गुरु जांभोजी (गुरू जांभोजी- जीवन परिचय (Guru Jambheshwar (Jambhoji) Biography In Hindi)
दोस्तों आज हम आपको बताने जा रहे हैं समाज सुधारक पर्यावरण के रक्षक गुरु जांभोजी के जीवन के बारे में दोस्तों जैसा कि आप सभी जानते हैं राजस्थान की धरा एक पावन धरा है यहां युगो युगो से महान संतों और महात्माओं ने अपने जीवन को पूरी तरह लोगों के बेहतर भविष्य और बेहतर वर्तमान के लिए समर्पित कर दिया है राजस्थान की पावन धरा में भक्तों, वीरों ने जन्म लिया है और वही उनकी कर्म स्थली रही है। इसी चरण में बिश्नोई पंथ के संस्थापक और पर्यावरण के रक्षक व प्रेरक और भाईचारे के समर्थक शब्द वाणी के सृजक श्री गुरु जांभोजी की जानकारी प्रदान करने जा रहे हैं गुरु जांभोजी का अवतरण सम्वत् 1508 में भादो वदी अष्टमी को नागौर के पीपासर गाँव ( Pipasar Nagaur Rajasthan) में हुआ था। गुरु जांभोजी के पिता जी का नाम लोहट जी व माता का नाम हांसादेवी था। गुरु जांभोजी एक महान संत और समाज सुधारक व भाईचारे के समर्थक थे उन्होंने अपने उपदेशों के माध्यम से समाज में व्याप्त पाखंड फैली हुई हिंसा, नशा, तंत्र-मंत्र, अशिक्षा, द्वेष आदि गलत प्रवृत्तियों को समाप्त करके लोगों को सत्य की ओर अहिंसा वादी की ओर , ईमानदारी, परोपकार, दया, पर्यावरण-रक्षा, न्याय के सच्चे और अच्छे रास्ते पर चलना सिखाया। उन्होंने ही बिश्नोई पंथ की स्थापना की थी और अपने शिष्यों को 29 नियमों की जानकारी दी थी जिससे उन्हें अपने आप तो फॉलो करना ही था बाकी उनसे मिलने वाले समस्त नागरिकों को भी फॉलो करना था जिससे समाज में फैली हिंसा और बुराई मिट सके संवत 1593 मार्गशीर्ष बद्री नवमी को लालासर गांव के पास उन्होंने अपने भौतिक शरीर को त्याग दिया अर्थात 1593 में उनकी मृत्यु हो गई थी और उनकी समाधि नोखा जो बीकानेर में स्थित है के मुकाम में बना दी गई है।
14-15वीं सदी में भारत की राजनीतिक परिस्थितियां बहुत ही विषम थी भारत छोटे-छोटे राज्यों में भी वक्त था राज्य आपस में ही लड़ते रहते थे उस दौरान सिकंदर लोदी दिल्ली का शासक था गुरु जांभोजी ने सिकंदर लोदी को भी उपदेश देकर उसको सही रास्ते पर चलना सिखाया था तत्कालीन समाज जातिभेद में बँटा था। गुरु जांभोजी ने इस बार का विरोध करते हुए कहा था कि उत्तम मध्यम क्यों जाणीजै, विवरस देखो लोई।’ समाज में बाल विवाह जैसी कृति भी फैली हुई थी और स्त्रियों की स्थिति बहुत ही दयनीय थी उस समय में धर्म के नाम पर बहुत ज्यादा पाखंड और आडंबर हो रहे थे आमजन की आर्थिक स्थिति बहुत ही खस्ता थी अर्थात आर्थिक स्थिति बेहद ही खराब थी मरूभूमि अर्थ आज राजस्थान में वर्षा बहुत कम होती थी व प्रायः हर साल अकाल पड़ता था। अकाल पड़ने पर गांव भी खाली हो जाते थे और लोग अपने परिवार में पशु लेकर दूसरे स्थानों पर निकल जाते थे।
बिश्नोई पंथ की स्थापना (Establishment of Bishnoi Panth)
जब गुरु जांभोजी के माता पिता जी का स्वर्गवास हो गया तब उन्होंने भी पीपासर छोड़ दिया और वह संभराथळ पर रहने लग गये। संवत् 1542 में इस क्षेत्र में भयंकर अकाल पड़ा ऐसे खतरनाक समय में गुरु जांभोजी ने आम जनता की अनधन के माध्यम से सहायता की इसी बीच अच्छी वर्षा हो गई और लोगों को बहुत राहत मिली गुरु जांभोजी ने संवत 1942 में ही संभराथळ धोरे पर कलश की स्थापना करके व लोगों को ‘पाहल’ देकर, बिश्नोई पंथ की विधि के अनुसार स्थापना की उन्होंने बिश्नोई पंथ की स्थापना की किसी जाति विशेष के लिए नहीं बल्कि मानव मात्र के कल्याण के लिए बिश्नोई पंथ की स्थापना की थी लोगों को लगता है बिश्नोई एक जाती है परंतु ऐसा बिल्कुल नहीं है बिश्नोई पंथ की स्थापना लोगों की भलाई करने के लिए ही की गई है।
बिश्नोई पंथ के उनतीस नियम (Twenty Nine Rules of Bishnoi Panth)
बिश्नोई पंथ में सबसे अधिक महत्व 29 नियमों का है यह नियम केवल बिश्नोई पंथ के लिए नहीं है बल्कि संपूर्ण मानव समाज के लिए हैं और इन सभी के लिए यह बहुत उपयोगी है इन नियमों का संबंध किसी काल स्थान या फिर किसी जाति विशेष से ना होकर पूरी मानव जाति से है और यह सर्वकालिक है आज पूरा विश्व पर्यावरण प्रदूषण, आतंकवाद, नशाखोरी, हिंसा, भ्रष्टाचार की चपेट में आ चुका है और इन समस्याओं का समाधान इन नियमों के पालन से ही किया जा सकता है यह नियम कुछ इस प्रकार हैं-
1. तीस दिन तक जच्चा घर का कोई काम न करे
, 2. पांच दिन तक रजस्वला स्त्री घर के कार्यों से अलग रहे,
3. प्रातःकाल स्नान करें,
4. शील का पालन करें,
5. संतोष धारण करें,
6. बाहरी व आंतरिक पवित्रता रखें,
7. प्रातः-सांय संध्या वंदना करें,
8. संध्या को आरती और हरिगुण गान करें,
9. प्रेमपूर्वक हवन करें,
10. पानी, वाणी, ईंधन व दूध को छान कर प्रयोग करें, 11. क्षमावान रहें तथा हृदय में दया धारण करें,
12. चोरी न करें,
13. निंदा न करें,
14. झूठ न बोलें,
15. वाद-विवाद न करें,
16. अमावस्या का व्रत रखें,
17. विष्णु का जप करें,
18. प्राणी मात्र पर दया करें,
19. हरा वृक्ष न काटें,
20. काम, क्रोध, मद, लोभ व मोह को अपने वश में रखें,
21. रसोई अपने हाथोेें से बनाएं,
22. बकरों व मेढ़ों का थाट रखें,
23. बैल को खसी न करवाएं,
24. अमल न खावें,
25. तंबाकू का प्रयोग न करें,
26. भांग न पीवें,
27. मांस न खावें,
28. मदिरा न पीवें,
29. नीले वस्त्र का प्रयोग न करें।
गुरु जांभोजी के पास बहुत बड़ी संख्या में राजा-महाराजा, विशिष्ट व्यक्ति व आम जनता उनके उपदेश सुनने के लिए आया करते थे और उनके संपर्क में रहकर बुरे कार्यों को त्याग कर परोपकार के मार्ग पर चलने लगते थे दिल्ली के शासक सिकंदर लोदी, नागौर के सूबेदार मुहम्मद खां नागौरी, जैसलमेर के रावल जैतसी, जोधपुर के राव सांतल, मेवाड़ के राणा सांगा, बीकानेर के राव लूणकरण आदि को भी गुरु जांभोजी ने की उपदेश दिए थे और वह बुराई का रास्ता छोड़कर अच्छाई के मार्ग पर चलने लगे थे वे सभी देश-विदेश के अनेक स्थानों पर भ्रमण करके लोगों को अहिंसा और परोपकार के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते रहते थे जिससे समाज से बुराई दूर हो सके ।
सबद वाणी (Jambhoji Shabad Vaani)
गुरु जांभोजी के माध्यम से कहे गए शब्दों का संग्रह ही ‘सबद वाणी’ है। इसका मुख्य उद्देश्य आत्मज्ञान और समाज अर्थात लोक कल्याण है गुरु जांभोजी ने विष्णु नाम के जप की महिमा बताते हुए कहा था कि-‘विसन विसन तूं भंणि रे प्रांणी ईंह जीवंण के हावै, तिल तिल आव घटंती जावै मरंण ज नैड़ो आवै।’ गुरु जांभोजी भटके हुए लोगों को जीवन का सही रास्ता बताते हुए उन्हें मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रेरित करते थे । सबद वाणी में ज्ञान, भक्ति व कर्म की नदी अर्थात त्रिवेणी प्रवाहित हुई है इसका मुख्य संदेश यह है कि संदेश- ‘जीया नै जुगति अर मूवा ने मुगति’ है।
बिश्नोई पंथ के प्रमुख धाम
- पीपासर,
- सम्भराथळ,
- मुकाम,
- जांगलू,
- लोदीपुर,
- रोटू,
- जांभोळाव,
- लालासर,
- लोहावट,
- रणीसर,
- भींयासर,
- रामड़ावास,
- रूड़कली,
- गुढ़ा,
- पुर,
- दरीबा,
- संभेलिया,
- नगीना,
- छान नाडी,
- रावत खेड़ा,
- खेजड़ली आदि हैं।
आज पूरे विश्व में पर्यावरण-प्रदूषण की समस्या ने बहुत खतरनाक अर्थात विकराल रूप धारण कर लिया है इससे जलवायु भूमि ध्वनि प्रदूषण, अकाल, बाढ़, तापमान वृद्धि जैसी भयंकर आपदाएं हमारे सामने आ रहे हैं कोरोनावायरस की महामारी से भी मानव जीवन बहुत ही खतरे में है पर्यावरण संरक्षण हेतु मानव और पशु पक्षियों एवं वनस्पति जगत में संतुलन रहना बहुत जरूरी है गुरु जांभोजी ने वृक्ष सुरक्षा एवं जीव दया के लिए उपदेश दिए थे विश्नोई समाज में व्रत होगा जीवो को बचाने के लिए अपने प्राण तक निछावर करने की एक लंबी परंपरा रही है संभवत 1787 में खेजड़ली गाँव में वृक्षों की रक्षा के लिये 363 स्त्रियों और पुरुषों ने अपना जीवन बलिदान कर दिया था अर्थात वह शहीद हो गये थे। इन शहीदों की स्मृतियों में यहां पर शहीद स्मारक भी बनाया गया है और यहां एक मेले का भी आयोजन किया जाता है वृक्षों का जीवन की रक्षा की भावना के कारण वृक्षों की अधिकता व हिरणऔ झुंड बिश्नोई गांव की पहचान के आधार बने हुए हैं।
गुरु जांभोजी ने 7 वर्ष पहले वृक्षों का जीव जंतुओं के संरक्षण का अनुकरणीय संदेश दिया था और उनके विराट व्यक्तित्व और प्रेरणास्पद कर्मठ जीवन भर लोक मंगलकारी उपदेशों से लाखों लोग आज भी प्रेरित होते हैं और प्रेरणा लेकर अच्छे मार्ग पर चलते हैं गुरु जांभोजी का जीवन संदेश आज भी उतना ही प्रसांगिक व उपदेशआत्मक है।
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शरद केवलिया -जनसम्पर्क अधिकारी राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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दोस्तों आज हमने अपने आर्टिकल के माध्यम से आपको बिश्नोई पंथ के संस्थापक गुरु जांभोजी के जीवन से संबंधित जानकारी प्रदान की है हम आशा करते हैं आप गुरु जांभोजी के जीवन से जरूर प्रेरित हुए होंगे ऐसे ही महान व्यक्तियों की जानका